Wednesday, November 11, 2009

कैसे मानू के तुम नहीं हो

मरहूम माँ को

कैसे मानू कि तुम नहीं हो ,
तुम मेरे ख्वाबों में हो ,
जब कभी होती हूँ उदास ,
लगता है पास आ कर सबब पूछती हो ,

कैसे मानू कि तुम नहीं हो ।

मेरी खुशी में खुश होना ,
मेरी रुलाई में दुखी होना ,
दिखाई नही देती फिर भी ,
देती हो अपना स्पर्श ,
मेरे से बातें करना ,
बातों का उत्तर देना
रात को नींद खुलने पर ,
अपना हाथ गालों पर लगा कर सहलाना ,
नहाने जाती हूँ तो कपड़े पकड़ाना ,
खाने बैठती हूँ तो खाना खिलाना ,
मेरे हंसने पर देती तो हल्की सी मुस्कान ,
गुमसुम होने पर हो जाती हो बेचैन ,
शीशे मैं जब देखती हूँ
प्रतिबिम्ब दिखता है तुम्हारा ,
कैसे
मानू कि तुम नहीं हो
- वंदना शर्मा

सोर्स - वंदना कि  दास्तान

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