Thursday, October 1, 2009

तूफ़ानी पितरेल पक्षी का गीत

मक्सिम गोर्की

समुद्र की रुपहली सतह के ऊपर हवा के झोंके तूफ़ान के बादलों की सेना जमा कर रहे हैं और बादलों तथा समुद्र के बीच तूफ़ानी पितरेल चक्कर लगा रहा है–गौरव और गरीमा के साथ, अंधकार को चीरकर कौंध जाने वाली बिजली की रेखा की भांति!
कभी वह नीचे उतर आता है–इतना की लहरें उसके पंखों को दुलारती हैं, फ़िर तेज़ी के साथ ऊँचे उठ जाता है–तीर की भांति बादलों को चीरता और अपनी भयानक चीख़ से आकाश को गुंजाता, और बादल –उसकी इस साहसपूर्ण चीख़ में चरम आनंदातिरेक का अनुभव कर–थरथरा उठते!
उसकी इस चीख़ में तूफ़ान से टकराने की एक हूक ध्वनित  होती! उसके आवेश और आवेगों की, उसके गुस्से और जीत में उसके विश्वास की लपक ध्वनित होती!
समुद्री गल पक्षी भय से चिचिया उठते,–चिचियाते-करहाते पानी की सतह पर छितर जाते और डर के मारे समुद्र की स्याह गहराइयों में समां जाने के लिए उतावले हो उठते!
और ग्रेब पक्षी भी विलाप करने लगते! संघर्ष के चर्म आह्लाद को– जो सभी संज्ञाओं  से परे है–वे क्या जाने? बिजली की गरज और बादलों की गड़गडाहट उनकी जान सोख लेती!
और बुद्धू पेंगुइन चट्टानों की दरारों में गर्दनें डाल समझते हैं कि मुक्ति मिल गई! एक अकेला तूफ़ानी पितरेल पक्षी ही है जो समुद्र के ऊपर, रुपहले झाग उगलती फनफनाती लहरों के ऊपर, मंडरा रहा है!
और तूफ़ान के बादल समुद्र के सतह पर घिरते आ रहे हैं–अधिकाधिक नीचे, अधिकाधिक काले–और गीत गाती तथा छलछलाती लहरें–गरज और गड़गडाहट से गले मिलने की उमंगों से भरी–ऊँची उठती रहीं हैं–ऊँची उठती जा रही हैं!
बिजली कड़कती और दमामा बजता है. समुद्र की लहरें हवा के झोकों के विरुद्ध भयानक युद्ध में कूद पड़ती हैं और हवा के झोंके–उन्हें अपने लौह आलिंगन में जकड़–इस समूची मरकत राशिः को चट्टानों पर दे मारते हैं–और उनका एक-एक कण छितरा जाता है!
तूफ़ानी पितरेल पक्षी–अंधकार को चीरकर कौंध जाने वाली बिजली की रेखा की भांति–तीर की तरह तूफ़ान के बादलों को बींधता, तेज़ धार की भांति पानी को भीतर से काटता चक्कर लगा रहा हैं और अपनी चीख़ से आकाश गूंजा रहा है!
दानव की भांति–सदा अट्टहास करते और सुबकते तूफ़ान के काले दानव की भांति–वह निर्बाध मंडरा रहा है–तूफ़ान के बादलों पर अट्टहास करता, आनंदातिरेक से सुबकता!
बिजली की गरज में थकान की भनभनाहट वह सुनता है. इस दानव की बुद्धि से वह छिपी नहीं रहती. उसका विश्वास है कि बादल सूरज की सत्ता को कभी नहीं मिटा सकेंगे!
समुद्र गरजता हैं….बिजली कड़कती है…
समुद्र के व्यापक विस्तार के ऊपर तूफ़ान के बादलों में नीली बिजली कौंधती है, लहरें उछलकर विद्धुत अग्नि-बाणों को लपकती और उन्हें ठंडा कर देती हैं और उनके सर्पिल प्रतिबिम्ब, बल खाते और बुझते, समुद्र की गहराइयों में समा जाते है.
तूफ़ान! शीघ्र ही तूफ़ान टूट पड़ेगा!
लेकिन तूफ़ानी पितरेल पक्षी है कि अभी भी–गौरव और गरीमा से भरा–बिजली की कड़क और बादलों के बीच और गरजते चिंग्घाड़ते समुद्र के ऊपर मंडरा रहा है और उसकी चीख़ में चरम आह्लाद की ध्वनी है–विजय की भविष्यवाणी की भांति…

आए तूफ़ान, अपने पूरे गुस्से के साथ आए!

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